कहा था हमने भी कभी
की खुदको और मायूस ना करेंगे
की जिस चौहराहे से आह निकली थी
उसकी चौखट पर और कभी ना चढ़ेंगे
निकले जो हम इस राह पर हैं
अब मंज़िल ना पकडे हम ना मुड़ेंगे
जैसी भी ज़िन्दगी मिलेगी
हम उसी को अपना करम मान लेंगे
जो साथी इस राह पर मिले
उनसे थोड़ी गुफ़तगू भी कर लेंगे
और जो पीछे छूट गए
उनका थोड़ी देर इंतज़ार भी लेंगे
पर ऐसा ना कहा कभी
चाहे आंधी आये या तूफ़ान
हम कदम पीछे कभी ना लेंगे
ऐसी गुंजाईश रक्खी ही ना हमने
की तुमसे मु मोड़ लेंगे
फिर कैसे सोचा तुमने की हम
आज भी वहीँ खड़े होंगे
अगर इंतज़ार भी करती रहोगी मेरा
वहां बस मेरे कदम ही दिखेंगे
क्यूंकि हम तो चल पड़े हैं
ना रुकेंगे, ना झुकेंगे
दिन बीतें रातें बीती
एक पल सारी यादें जीती
फिर क्यों अचानक से आज भी तुम
याद आयी हमे
ना कुछ बोले, ना कुछ सुने
कैसी बेचैनी चाही हमपे
जो हमारे कदम भी बोल पड़े
रुक जाओ, मुद जाओ
ऐसी चींखें सुन पड़े
सोचा था हम काफी आगे निकल पड़े
पर जब कानाफूसी सुनी ऐसी
हमारे आँखें भी रो पड़े
लगता ह आज भी ये सिर्फ तुम्हारे ही सुनते रहे